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इस बार का टोक्यो ओलंपिक भारत के लिए शानदार रहा,पी सी सिंधू इस बार लगातार दूसरी बार कांस्य पदक लेने वाली खिलाड़ी बनी,वहीं हमारी दोनों हॉकी टीम ने ओलंपिक में इतिहास रच दिया।
एक और महिला हॉकी टीम पहली बार सेमी फाइनल तक पहुंची,दूसरी और पुरूष हॉकी टीम ने पिछले 49 साल के सूखे को भर कर पहली बार ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया।
एक ही सही लेकिन नीरज चौपड़ा ने जेवलिन थ्रो में गोल्ड भारत के नाम किया।
ये सब सुनने और पढ़ने में बहुत अच्छा लग रहा है और छाती को चौड़ा कर 56 इंच भी करता है,लेकिन आपको ये जान कर बड़ी तकलीफ होगी की हमारे देश मे कई ऐसे खिलाड़ी है जिन्होंने नेशनल लेवल पर खेला है,राज्य और देश का नाम भी रोशन किया है लेकिन वो आज पाई पाई को मोहताज हैं।अपना रहन बसर करने के लिए कुछ भी काम करने को मजबूर हैं।इनकी सुद न तो कभी साशन ने ली है और न ही प्रशासन ने।
ये खिलाड़ी हैं
मोची का काम करने वाले सुभाष आठ वार नेशनल खेल चुके हैं:
दी लल्लनटॉप के मुताबिक 90 के दशक में सुभाष चंद ने आठ बार हॉकी में नेशनल खेला हैं और हिमाचल का नाम रोशन किया है।
फ़िलहाल,हिमाचल के हमीरपुर में रहने वाले सुभाष चंद अपना और परिवार का पेट भरने के लिए जिले के मुख्य बाजार में मोची का काम करते हैं,ये इनका खानदानी काम है।
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुभाष ने अपनी हालात देखते हुए अपने बच्चों को खेल से दूर रखा है।वहीं वर्तमान केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से उन्हें उम्मीद है कि वो बच्चों के लिए कुछ करेंगे।
बता दें कि हमीरपुर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का संसदीय क्षेत्र है जहाँ देश का नाम रोशन करने वाला खिलाड़ी आज मोची का काम कर रहा है।
धनराज पिल्लई के साथ खेल चुके विश्वजीत बेच रहे हैं मछली:
Loktez.com के मुताबिक धनराज पिल्लई के साथ हॉकी खेल चुके हमीरपुर के विश्वजीत मेहरा आज दयनीय स्थिति में हैं।विश्वजीत के भाई संजीव मेहरा भी नेशनल प्लेयर रह चुके हैं।
लेकिन आज दोनों भाई मछली बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं।
5 बार नेशनल टीम में खेल चुके विश्वजीत कहते हैं "धनराज पिल्लई और परगट सिंह के साथ खेलना मेरे लिए सबसे अच्छा पल था।
रिपोर्ट्स के मुताबिक ओलम्पिक में भारतीय टीम के प्रदर्शन पर मेहरा खुशी ज़ाहिर नहीं कर पा रहे थे।
बॉक्सिंग चेम्पियन पार्किंग लॉट में नोकरी करने को मजबूर :
दी लल्लनटॉप के ही मुताबिक चंडीगढ़ की बॉक्सिंग चेम्पियन रह चुकी रितु आज पार्किंग लॉट में टिकट काटने का काम करती हैं।उन्हें दिन के 350 रुपए मिलते है लेकिन इससे घर नहीं चलता।
रितु ने चंडीगढ़ के सेक्टर 20 के गवर्मेंट गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल से पढ़ाई की है और बॉक्सिंग में नेशनल लेवल पर कई मेडल जीत चुकी हैं।
2016 में चंडीगढ़ प्रसाशन के इंटर स्कूल चेम्पियन शिप में गोल्ड जीता था,वहीं इंटर स्कूल टूर्नामेंट में सिल्वर अपने बाम किया था।
पिता की तबियत बिगड़ने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी रितु पर आ गयी,जिसके लिए रितु को बॉक्सिंग से किनारा करना पड़ा।ब्लाइंड कप जितने वाले क्रिकेटर नरेश तुमड़ा भी अब सब्ज़ी बेचने को मजबूर हैं।
ये सिर्फ रितु, सुभाष या विश्वजीत की कहानी नहीं है,ऐसे न जाने कितने खिलाड़ी है जिनकी हालात और कहानी मीडिया से भी अछूती रह जाती है,तो सरकार और संस्थाओं द्वारा उनकी सुद लेना तो दूर की बात है।
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