बिगड़ते हालातो के बीच इन देशों से भाग खड़ा हुआ था अमेरिका

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अफगानिस्तान में 20 साल से तालिबान के खिलाफ "वॉर टू टेरेरिज़्म" के लिए सुरक्षा अभियान चलाने वाला अमेरिका अब अफगानिस्तान को छोड़ कर जा चुका है।बहरहाल,अफगानिस्तान संघर्ष की स्थिति में है,वहीं तालिबान अपनी हुकूमत कायम करने में लगा है।वैसे,ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब हालात को बिगड़ता देख कर अमेरिका भाग खड़ा हुआ है।अफगानिस्तान के अलावा भी क्यूबा,सोमालिया और वियतनाम के साथ संघर्ष की स्थिति में भी अमेरिका हारने की कगार पर बोरिया बिस्तर लेकर भाग खड़ा हुआ था।इस पर बात करने से पहले मामला क्या है वो जान लेते हैं। 

ये है मामला :

अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के ऐलान के बाद से ही तालिबान सक्रिय हो गया।पहले जहां सिर्फ 77 जिलों पर तालिबानी कब्ज़ा था,वहीं अब ये बढ़कर 304 हो गया। 

1 मई को राष्ट्रपति बाइडन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की बात कही थी। सैनिकों का अफगानिस्तान से जाने का सिलसिला अगस्त में पूरा होना था,लेकिन 4 मई से ही तालिबान की हरकतों में बदलाव होने लगा। आक्रामक मिलिट्री ऑपरेशन से तालिबान ने शहरों पर कब्ज़ा तेज़ कर दिया।

मेहज़ 4 महीनों में तालिबान ने अफगानिस्तान के 304 शहरों समेत 34 राज्यो की राजधानियों पर भी कब्ज़ा कर लिया है।जो पिछले 20 सालों में पहली बार हुआ है। 




जब पाकिस्तानी सेना ने अमेरिकी सेना को बचाया था :


दैनिक भास्कर के एक आर्टिकल के मुताबिक 1991 में सोमालिया में विद्रोही गुटों ने राष्ट्रपति मोहम्मद सियाद बरे का तख्तापलट कर दिया।देश के कबीले अलग अलग गुटों में तब्दील हो गए,राष्ट्रीय सेना भी अपने कबीले वाले गुट में शामिल हो गयी।

 बड़े स्तर पर दो गुट सामने आए,जिसमे एक गुट मोहम्मद अदीदी और दूसरा अली मेहदी मोहम्मद का था।दोनों के बीच सत्ता को हासिल करने की जंग छिड़ गई।हालात ये थे कि सोमालिया में मानवीय संकट उत्पन्न होने लगा। 3 अक्टूबर को यूएन मिशन के तहत अमेरिका ने सोमालिया के मानवीय संकट को खत्म करने का बेड़ा उठाया।

वहीं मोहम्मद अदीदी को पकड़ने के लिए टास्क फोर्स भी भेजी। लेकिन,अमेरिका नहीं जानता था कि वो सामने से मुसीबत को मोल ले रहा है।विद्रोहियों ने अमेरिकी हेलीकॉप्टर को मार गिराया,वहीं सैनिकों को भी मौत के घाट उतारा।

मरे हुए अमेरिकन सैनिकों को सोमालिया की सड़कों पर घसीटा गया। पूरी एक रात की लड़ाई के बाद यूएन मिशन के तहत सोमालिया में तैनात पाकिस्तानी सेना ने बचे हुए अमेरिकी सैनिकों को सुरक्षित वहां से निकला।जिसके बाद अमेरिका इस मिशन से पीछे हट गया। 



जब एक परमाणु युद्ध होते होते रह गया :

 क्यूबा मिसाइल संकट वाला संघर्ष तो सबको याद ही होगा।जब 1961 में सोवियत संघ ने क्यूबा में परमाणु मिसाइल तैनात की थी।अमेरिका ने इसके खिलाफ जाकर क्यूबा की घेरेबंदी ही कर डाली थी, जिसके बाद सोवियत संघ ने मिसाइल हटा ली और एक बड़ा युद्ध होते होते रुक गया। 

दरअसल,इस वक्त भी अमेरिका ने अपने साथियों से एक वादा खिलाफी की थी।1959 में जब फिदिल कास्त्रो ने क्यूबा में कम्युनिस्ट साशन की स्थापना की तो अमरिका और क्यूबा के संबंधों में तकरार होने लगी।क्यूबा में निजी सम्पतियों को जब्त करने के साथ ही 1961 में अमेरिका और क्यूबा के कूटनीतिक सबंध भी टूट गए। 

अमेरिका ने क्यूबा से भागे हुए लोगो का इस्तेमाल किया।उन्हें हथियार चलाना सिखाया।वहीं 17 अप्रैल 1961 को पिंग्स की खाड़ी के रास्ते क्यूबा में हमला कर दिया।इनके आगे बढ़ने से पहले ही क्यूबा की वायुसेना ने इनकी नावों को धराशाही कर दिया।दूसरी ओर हमलावरों के मदद मांगने पर अमेरिका के तत्काल राष्ट्रपति जॉन ऑफ कैनेडी एन वक्त हवाई मदद देने से मुकर गए।क्यूबा ने 100 हमलावर मार गिराए,1100 को बंधी बना लिया। 



वियतनाम में भी हुआ था अफगानिस्तान जैसा हाल :

 दैनिक भास्कर लिखता है कि 1955 में उतरी वियतनाम और दक्षिणी वियतनाम में संघर्ष की स्थिति बनी थी।उतरी वियतनाम कम्युनिस्ट विचारधारा का था और दक्षिण के खिलाफ सैन्य जमावड़ा लगा रहा था.

 अमेरिका ने कम्युनिस्ट का विस्तर रोकने के लिए अपनी सैन्य टुकड़ियों को वियतनाम भेजना शुरू किया।धीरे धीरे सेना की संख्या पांच लाख हो गई, वहीं अमेरिकी सेना को वियतनाम में 19 साल तक उतरी और दक्षिणी वियतनाम के बीच मध्यस्थता करनी पड़ी।

1973 में पेरिस समझौता हुआ जिसमें अमेरिका,उतरी वियतनाम और दक्षिणी वियतनाम एक मत हुए।अमेरिका ने अच्छा मौका देख अपनी सेना की वापसी की,इसके तुरंत बाद ही 30 अप्रैल 1975 में उतरी वियतनाम, दक्षिणी वियतनाम के साइगॉन में घुस गई।जहाँ से बचे हुए अमेरिकन सैनिकों को हेलीकॉप्टर भेजकर आनन फानन में निकालना पड़ा।


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