जब रानी रामपाल को स्कर्ट पहनकर हॉकी खेलने को परिवार ने किया था मना

 भारत मे सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट और कबड्डी के साथ साथ हॉकी,निशाने बाज़ी,टेनिस और बास्केट बॉल जैसे बीसियों खेल खेले जाते हैं,वहीं इन्हें खेलने वाले खिलाड़ियों की संख्या लाखों में हैं।


यही खिलाड़ी किसी के लिए प्रेरणा स्रोत बनते है तो किसी के लिए एक उदाहरण।हर तीसरा इंसान इनके जैसे बनने की बात कहता भी मिल जाता है।


लेकिन सच तो ये है कि हमे इनकी याद ही तब आती है जब हमें  मेडलों की प्यास होती है,वैसे भी सबको प्रभावित करने वाला इनका जीवन किन अभावों से बिता है इससे किसी को क्या ही फर्क पड़ता होगा।


बहरहाल,जापान के शहर टोक्यो में ओलंपिक गेम्स चल रहे हैं,जिसमे हर एक भारतीय खिलाड़ी अपने जी जान से खेल रहा है।टेनिस खिलाड़ी पीवी सिंधू ने लगातार दूसरी बार ओलपिंक में कांस्य पदक जीता है वहीं महिला हॉकी टीम पहली बार सेमी फाइनल तक पहुंची।


महिला हॉकी टीम के सभी खिलाड़ियों का जीवन संघर्ष को बयां करता है।ये सभी लड़कियां या तो गरीब परिवार से आतीं है या ऐसे समाज से जिसकी सोच आज भी पिछड़ी हुई है।


महिला हॉकी टीम ने पहली बार सेमी फाइनल में पहुंचने का जो इतिहास रचा है वो काबिले तारीफ़ है।



दिहाड़ी मज़दूर की बेटी बनी कप्तान :


महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल हरियाणा के शाहबाद से आती है।रानी 15 साल की उम्र में नेशनल खेल चुकी हैं वहीं रानी की कप्तानी में भारतीय महिला हॉकी टीम एशिया कप और जूनियर विश्व कप जीत चुकी है।


रानी को बचपन से ही हॉकी खेलना पसंद था लेकिन पिता को दिहाड़ी से मिले पैसों से हॉकी स्टिक खरीदना सम्भव नहीं था।ऐसे में टूटी हॉकी स्टिक से वो प्रेक्टिस किया करती थीं।


NDTV को दिए एक इंटरव्यू में रानी कहती हैं कि जीवन संघर्ष वाला रहा और यहां तक पहुंचने में बहुत सी कठिनाई आईं।कई बार पीने के लिए दूध कम पड़ जाता था तो पानी मिलाकर पी लिया करती थी,लेकिन अपने कुछ कर दिखाने वाले जज़्बे को कायम रखा और महिला हॉकी टीम की कप्तान बनी।


स्कर्ट पहनकर हॉकी खेलने के लिए परिवार ने किया था मना:


प्राइम टाइम विद रविश के अनुसार रानी हॉकी की शुरूआती प्रेक्टिस सलवार कमीज पहनकर किया करती थी।लेकिन जब बेसिक ट्रेनिंग के लिए टीम में सलेक्शन हुआ तो परिवार ने उन्हें स्कर्ट पहनने से मना कर दिया था।

रानी ने परिवार से "कुछ न कर सकी तो वापस आ जाऊंगी" कहकर समझाया और परिवार ने उनका साथ दिया।वहीं आज का दिन है जब रानी टोक्यो ओलंपिक में महिला हॉकी टीम को सेमी फाइनल तक ले जाने वाली कप्तान बनी हैं।



बाकी खिलाड़ियों ने भी झेला है ये सब :


इंडियन एक्सप्रेस ने सभी खिलाड़ियों का विवरण छापा है जिसमे हर एक खिलाड़ी के संघर्ष को शामिल किया है।

महिला हॉकी प्लेयर सलीमा टेटे के गांव बड़की झापर में बिजली नहीं है,ऐसे में पिता जब जनरेटर लेकर आए तब गांव वालों ने मैच देखा।


सोनीपत की नेहा के लिए दो वक्त खाना जुटाना भी बड़ा मुश्किल काम था, पिता शराब के नशे में रहते और नेहा को मां के साथ फेक्ट्री में काम करना पड़ता।

निशा भारती भी सोनीपत से आती है,पिता दर्ज़ी का काम किया करते थे लेकिन बेटी को पूरा सपोर्ट करते थे 2015 में पिता को लकवा मार गया जिसके बाद मां को फेक्ट्री में काम करना पड़ा।


खिलाड़ियों की ऐसी हालात एक और नेताओं के बड़े बड़े बयानों की पोल खोलती है।वहीं ये भी सवला उठाती है कि खेलो के लिए दिए जाने वाले बड़े बड़े बजट कहाँ गायब हो जाते जो खिलाड़ियों की ऐसी स्थिति हो जाती है।


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