Two India's


 मैं,भारत।

 आप मुझे जानते हो या नहीं मुझे नहीं मालूम लेकिन जो लोग भारत में रहते हैं, मैं उनसे आज भी अपरिचित हूँ।

 भारत के नए दौर की वो सड़के जहां स्वतंत्रता सेनानियो के पदचिन्हों की छाप मिट चुकी है,वहीं मेरे हिस्से की ज़मीन पर किसी धातु के छाप सी वो पहचान आज भी दर्ज है।

 

 नया भारत इस देश का आवरण है, किंतु मैं भारत 74 साल साथ चलते हुए भी कहीं पीछे सा छूट गया हूँ।

 

 मेरे हिस्से का सूरज आज भी पूर्व के खेत से निकलकर पश्चिम के खेतो में कहीं छिप जाता है।  

मेरी गोद में गुनगुनाने वाली सरस्वती और गोदावरी अब इस नए भारत के उद्योगों के काम आती है।

मेरे आंगन में खिलखिलाने वाली वो नन्ही हँसी, आज खूबसूरती वाले चाय बागानों में कहीं झुलस रही हैं।

मैं वो भारत हूँ जिसमें अन्न के लिये आज भी किसान धरती का सीना चीरता है। 


मगर ये भी सच है कि इस नए भारत की जगमगाहट सूरज को भी मात दे देती है।


लेकिन,जनाब सवाल यहाँ ये उठता है कि आप मुझे समझोगे कैसे? क्योंकि मेरी चर्चा तो शेक्षणिक संस्थानो में चाय की टपरी पर हो जाया करती हैं और नया भारत अखबारों और टेलीविजन से नीचे ही नहीं उतरता।


शायद अब कुछ हद तक आप मुझे पहचान पाए होंगे?


 अगर नहीं.......तो और सुनिये...



मैं वो भारत हूँ जिसके आँचल में समाये करोड़ो बच्चों को खुला आसमान तो मिलता है लेकिन उसे छूने के लिए उन्हें आज भी संघर्ष करना पड़ता है।

मैं वो भारत हूँ जहां तपती धूप और पेर के छाले एक साथ  संघर्ष की गाथा लिखते है।

मैं वो भारत हूँ जहां दो सुखी रोटी और एक गिलास छाछ को ही जीवन समझा जाता है।

इसके बावजूद भी मुझे इंडिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा।


शायद अब तो पहचान ही गये होंगे....


मैं इंडिया से छोटा नहीं हूँ इस वर्ष हम दोनों ही 74 के हो रहे है। पर मुझे महसूस होता है कि इंडिया का कद भारत से कहीं ज़्यादा है।

मैं उपेक्षित तो महसूस करता हूँ लेकिन ख़ुशी इस बात की है कि मुझमे भारत जैसी सरलता,सरसता, सत्यता, और साहस शायद इंडिया की तुलना मे अधिक है। मैं खुश हूँ कि मेरे पास संतुष्टि और अपार शांति है।

मैं खुश हूँ कि मेरे पास दादी के नुस्खे है, माँ का बिलोया छाछ है, पापा के हाथ से दुहा हुआ दूध भी है और दादा का  अपार स्नेह है


अब तो शायद आप समझ ही गये होंगे, मैं अनछुआ भारत हूँ।

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