Chhatisgarh high court: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई में कहा "मैरिटल रेप" रेप की श्रेणी में नहीं आता

 बीते गुरुवार (26 अगस्त) छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई में कहा की "पति द्वारा पत्नी के साथ जबरन बनाया गया यौन संबंध मैरिटल रेप/रेप की श्रेणी में नहीं आता।" हालांकि इसी केस में न्यायमूर्ति एनके चंद्रवंशी ने भारतीय दंड संहिता (IPC ) की धारा 377 के तहत आरोपी पति के लिए आरोप तय किये हैं।


महिला ने अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज करते हुए बताया था कि शादी के कुछ दिन बाद से ही पति और परिवार वालो ने महिला को दहेज के लिए प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।महिला के न कहने के बावजूद भी उसके साथ यौन और अप्राकृतिक सम्बन्ध बनाया गया।


छत्तीसगढ़ HC ने सुनवाई में कहा कि भारत मे रेप के लिए कानून है और सज़ा का प्रावधन भी लेकिन भारत मे मैरिटल रेप को लेकर कोई भी प्रावधान नहीं है।इसलिए पति, विवाहित पत्नी से उसकी इच्छा के विरुद्ध शारीरिक संबंध बनाता है तो ये रेप की श्रेणी में नहीं आता।बशर्ते,विवाहित पत्नी की उम्र 18 से कम नहीं होनी चाहिए।


रिपब्लिक की रिपोर्ट के मुताबिक , पत्नी के क्रूरता,दुर्व्यवहार और दहेज के लिए प्रताड़ित करने वाले आरोप पर कोर्ट ने आरोपी पति पर IPC की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने सम्बन्धी) और 498 ए (दहेज) के तहत आरोप बरकरार रखे हैं।वहीं धारा 376 (बलात्कार की सज़ा) के आरोपों से पति को राहत दी है।


दी क्विंट के अनुसार छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के इस फैसले पर नाराज़गी जताते हुए लोग तरह तरह के ट्वीट कर रहें हैं।एक यूजर ने लिखा है कि 'कोर्ट का ये फैसला मैरिटल रेप को रेप की श्रेणी में लाने की मुहिम को कही पीछे ले जाता है।'

हाई कोर्ट ने केस को रेप की श्रेणी में न रखते हुए कहा है कि बार बार महिला के प्राईवेट पार्ट में किसी बस्तु को डालना प्रकृति के आदेश के विपरत है जिसके तहत धारा 377 के अंतर्गत पति पर आरोप दर्ज किए गए हैं।


बता दें कि गुजरात और दिल्ली में भी मैरिटल रेप से जुड़े केस आ चुके हैं वहीं भारत मे मैरिटल रेप से जुड़े प्रावधान न होने के चलते छत्तीसगढ़ कोर्ट जैसे ही फैसले लिए गए हैं।2017 में बीबीसी ने मैरिटल रेप से जुड़ी एक रिपोर्ट लिखी थी।जिसमे दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाने वाली याचिका के खिलाफ केंद सरकार ने कहा था कि "मैरिटल रेप" को अपराध की श्रेणी में लाने का  मतलब है 'वैवाहिक संस्था में अस्थिरता' को लाना।


इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने इसे महिलाओं के पास  पतियों को सताने का एक आसान औजार भी कहा था।इसी रिपोर्ट में बीबीसी ने हिन्दू मैरिज एक्ट के हवाले से लिखा था "कानूनन ये माना गया है कि वैवाहिक जोड़े में अगर कोई एक सेक्स के लिए इनकार करता है तो ये क्रूरता है, वहीं इसके आधार पर व्यक्ति अपने पार्टनर से तलाक ले सकता है।




Comments