मदर टेरेसा जीवन परिचय: जन्म, शिक्षा, कोट्स और मृत्यु

 

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अपना पूरा जीवन बेसहारा और पीड़ित लोगों को समर्पित करने वाली मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसेडोनिया के अल्बेनिया परिवार में हुआ था। उनका असली नाम आन्येज़े गोंजा बोयाजियू था।बेहद छोटी उम्र थी जब उन्होंने पिता को खो दिया था।पिता की गैर मौजूदगी में जीवन अभाव से भर गया था।लेकिन मदर टेरेसा कहाँ हार मानने वाली थी,पहले खुद के लिए फिर दुसरो के लिए संघर्ष करती रहीं।पूरे विश्व को अपना घर कहने वाली मदर टेरेसा ने विश्व भर में ख्याति प्राप्त की।


बचपन से था धर्म के प्रति झुकाव:-

मदर टेरेसा की माँ बहुत ही धार्मिक औरत थी उसपर परिवार कैथोलिक था तो चर्च जाना आम था।माँ की ईश्वर में ऐसी श्रद्धा को देख कर मदर टेरेसा भी कहाँ पीछे रहती।बचपन से उनका भी झुकाव धर्म के प्रति बढ़ता गया।वो रोज़ाना चर्च जाया करती और जीजस में सच्ची आस्था रखती थीं।

8 साल की उम्र में पिता को खो दिया था:-

मदर टेरेसा का जन्म एक सम्पन्न परिवार में हुआ था।खान पान आदि में कोई कमी नहीं थी।एक हस्ता खेलता परिवार था,ऊपर से मदर घर मे सबसे छोटी थी तो सबका प्यार भी खूब मिला करता था।लेकिन जब वो मेहज़ 8 साल की थी तब अचानक पिता के गुज़र जाने की खबर ने सबको तोड़ दिया।


मां ने घर की हालत संभालने के लिए कपड़े का व्यापार शुरू किया।मदर हमेशा मां के साथ रहा करती,अपनी तंग हालात में भी मदर गरीबो की मदद किया करती थी।काफ़ी बार ऐसा हुआ जब वो मां से छिप कर ग़रीबो को खाना दे आती थीं।


12 साल की उम्र में अपनाया धार्मिक रास्ता:-

रोर मीडिया के हवाले से,मदर सिर्फ 12 साल की थी जब पिता के गुज़र जाने के बाद वो धर्म के और करीब आ गईं।चर्च के फादर और धर्म गुरु अक्सर उनसे बातें किया करते थे।यही वो उम्र थी जब मदर ने महसूस किया कि उन्हें धार्मिक रास्ते  पर चलना है और असहाय गरीब लोगों की मदद करनी है।


निरंतर ईश्वर का ध्यान किया करती और जीजस में अटूट श्रद्धा रखती।18 साल की उम्र में घर का त्याग कर आयरलैंड की ओर प्रस्थान किया।वहाँ मदर ने "नन" बनने की प्रक्रिया शुरू की और चर्च में पढ़ाई करने लगी।



भारत में मिली थी "मदर टेरेसा" को अपनी सही राह:-

डबलिन में कुछ महीनों के प्रशिक्षण के बाद मदर को भारत भेज दिया गया।1930 में भारत आई मदर ने कलकत्ता के सेंट मैरी हाई स्कूल में पढ़ाना शुरू किया।लेकिन कहते है कि मदर को अपनी सही राह भारत मे आकर मिली।जब उन्हें कॉन्वेंट यानी स्कूल की दीवारों के बाहर बेसहारा और पीड़ित लोगों को देखा।वो उनका दर्द अच्छी तरह से समझती थी।


स्कूल के वरिष्ठों से स्कूल छोड़ने की अनुमति लेकर कलकत्ता की मलिन बस्तियों में गरीबों के लिए काम करने चली गयीं।मदर ने वैसे तो हर ज़रूरत मंद के लिए काम किया लेकिन उन्होंने बीमार ,कृष्ठ और तपेदिक से पीड़ित लोगों के लिए अधिक काम किया।

कहते हैं मदर से जो लोग मदद मांगने आते थे वो कभी खाली हाथ नहीं जाते थे।



"मदर टेरेसा" से जुड़ा एक प्रसिद्ध किस्सा:-

एनबीटी ने अपने लेख में ऐसे ही एक किस्से का ज़िक्र करते हुए लिखा है, मदर हमेशा सबकी मदद किया करती थी।ज़रूरत मंद अगर उन तक न पहुंच पाए तो वो खुद वहां पहुंच जाती थी।

एक दिन मदर को पता चला कि एक परिवार काफ़ी दिनों से भूखा है,परिवार में एक महिला और कुछ 7 या 8 बच्चे हैं।मदर उनके लिए चावल लेकर चली गयीं।उस महिला ने मदर के हाथों से चावल लिए और मदर को घर मे बैठने के लिए कह कर बाहर चली गयी।

कुछ देर में जब वो वापस आई तो चावल का बर्तन खाली था।मदर के पूछने पर उसने बताया कि उसके पड़ोस में एक मुस्लिम परिवार है जो बहुत दिनों से भूखा है।उन्हें इन चावलों की हमसे ज़्यादा ज़रूरत थी।

महिला की ये बात सुनकर मदर ने उसकी तरफ गर्व से देखा और कहा "धन्य है ये देश जहां लोग अपनी भुख की फिक्र किये बिना दूसरे की भूख मिटाने की कोशिश करते हैं।"



मदर टेरेसा को इन देशों ने किया है पुरुस्कृत:-

अपनी ज़िंदगी के 70 साल  सार्वजनिक सेवा को देने वाली मदर टेरेसा को भारत की नागरिकता 1945 में मिल गयी थी।उनके काम के लिए भारत ने उन्हें पंडित जवाहर लाल नेहरू शांति पुरस्कार, पद्मश्री और भारत रत्न से नवाजा।


वहीं इंग्लैंड की महारानी ने मदर टेरेसा को आर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर, राजकुमार फिलिप ने टेम्पल्स पुरुस्कार, अमेरिका ने कैनेडी पुरुस्कार से सम्मानित किया।विश्व शांति के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया।2016 में पॉप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत के रूप में घोषित किया।



मदर टेरेसा के कोट्स:-

● मदर टेरेसा हमेशा कहती थी कि "पूरा विश्व उनका घर है।"

● जब हम एक दूसरे के मुख पर मुस्कान के साथ मिलते हैं,तो सही मायने में यही प्रेम की शुरुआत होती है।

● प्रेम वो फ़ल है जिसे पाने के लिए आपको किसी ऋतु का इंतजार नहीं करना पड़ता,आप जब चाहे इसको प्राप्त कर सकते हैं।

● अगर आप सौ लोगो को खाना नहीं खिला सकते ,तो कम से कम एक को खिला सकते हैं।



मदर टेरेसा द्वारा संचालित संस्थान:-

इंडिया के स्टार वेबसाइट के मुताबिक मदर ने निर्मल ह्रदय नामक घर की स्थापना की थी जिससे कलकत्ता निगम के लोग काफ़ी प्रभावित हुए थे।7 अक्टूबर 1950 को कलकत्ता में "मिनिशरीज़ ऑफ चैरिटी" संस्था की शुरुआत की जिसे सरकार ने मान्यता भी दी।इसके अलावा शिशु निकेतन, शान्ति नगर और प्रेम घर मे मदर खुद कार्य किया करती थी।



हार्ट अटैक से हुई थी मौत:-

5 सितंबर 1997 को मदर टेरेसा की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हो गयी थी।उनकी अंतिम यात्रा पर विश्व के कोने कोने से लोग आए थे।2016 में मदर को संत की उपाधि मिलने के बाद भारतीय डाक विभाग ने एक डाक टिकट जारी किया।उनकी याद में सामाजिक न्याय के लिए मदर टेरेसा मेमोरियल अवॉर्ड भी दिया जाता है।

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