सौलाह सोमवार ( SOLAH SOMVAAR )

IMAGE CREDIT : ISTOCK 

 


आज राकेश के यहाँ और दिनों के मुकाबले कुछ ज़्यादा ही चहल पहल थी। राकेश को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.  कभी वह कुर्सियों की दिशा बदलता तो कभी वो मेजपोश को बदल देता.  कभी अपनी पत्नी सविता को चाय को लेकर हिदायतें देता या कभी सविता से पूछता की नाश्ता पूरा तो हो जाएगा ना ? अगर कोई कमी हैं तो ला देता.  मेहमान आ गए तो उनके सामने लाना शोभा नहीं देगा. 

उधर सविता भी और दिनों से ज़्यादा मुस्तैद रसोई घर में डटी हुई थी , आज सुबह सुबह ही उसने पकोड़ो और कई तरीके की नमकीन का रसोई में अम्बार लगा दिया था . वह कभी दूध देखती तो कभी यह अंदाजा लगाती की इतने मेहमानो के लिए चाय का पानी कितना सही रहेगा .


दोनों पति पत्नी तैयारियों में इतने मशगूल थे की समय की तरफ किसी का ध्यान ना था।  मेहमानो के आने का समय हो चूका था.  अचानक सविता का ध्यान इस पूरी लीला के असली किरदार की और गया सविता ने देवी को ज़ोर से आवाज़ दी बदले में देवी की घोर निंद्रा से पूर्ण एक धीमी सी हुंकार सविता के कानों तक आई। सविता ने तुरंत ही देवी को बिस्तर छोड़ नहाने और तैयार होने का आदेश दिया।  मगर देवी तो देवी थी वो करवट बदल कर सोने लगी तब सविता ने उसे बहुत ज़ोर देकर उठा दिया और तैयार होने का आदेश फिर से दे दिया।  देवी भी मन मार कर उठ बैठी और मां के आदेश का पालन करने की ततपरता को दिखते हुए आलास भरे पैरों से नहाने के लिए चल दी। यूँ तो सविता देवी पर कभी कभी बहुत गुस्सा करती थी किन्तु वो गुस्सा माता के वात्सल्य से परिपूर्ण रहता था। 


देवी राकेश और सविता की वो भाग्यशाली संतान थी जो पांच सन्तानो की मृत्यु के पश्चात जीवित बची थी। पिता के लाड और माँ के वात्सल्य की उसको कोई कमी न थी। देवी कोई नाम मात्र की देवी नहीं थी उसके जन्म के साथ ही राकेश और सविता का जीवन बदल ही गया था।  पाई पाई को तरसने वाले राकेश की आज अपनी दूकान और माकन था। 


देवी रूप सौन्दर्य में भी किसी स्वर्ग की अप्सरा से कम नहीं थी।  उसके रूप सौंदर्य को देख कर लगता था की मनो वो किसी बात पर इंद्र से रूठ कर स्वर्ग से धरती पर चली आई हो। देवी हर काम को बड़ी निडरता से करती थी, यूँ तो उसकी उम्र अभी छब्बीस वर्ष ही थी लेकिन उसके संग की सभी सहेलियों का विवाह हो चूका थ।  देवी के माता पिता को भी देवी के विवाह की चिंता थी। हालांकि , कई बार देवी के विवाह की बात चली थी लेकिन विवाह हो नहीं पाया। 

देवी की सभी सहेलियां देवी से किसी न किसी बात को लेकर इर्षा करती थी , और करें भी क्यों न देवी थी ही ऐसी।  जितना रूप मनमोहक उतना सीधा स्वभाव,पढाई - लिखाई में भी सबसे आगे।  इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बात की देवी ईश्वर में बड़ा मानती थी।  उसे लगता था की इस धरती पर जो भी होता है वो ईश्वर की मर्ज़ी से ही होता है। यही कारण था की देवी को अपने विवाह की कोई चिंता नहीं थी।  लेकिन  हाँ वो मन ही मन थोड़ी चिंतित भी रहती थी।  चिंता इस बात कि की कहीं उसके ईश्वर उसके सोलह सोमवार के व्रत का फल देना न भूल जाए। 


हर रोज़ की तरह आज भी देवी नहा कर मंदिर जाने के लिए घर से निकली, हालाँकि सविता ने पीछे से आवाज़ लगाई। लेकन देवी घर से निकल चुकी थी।  थककर सविता ने राकेश से कहा, आज मंदिर जाने की क्या ज़रूरत थी, पता है न घर में मेहमान आ रहे है। अगर देवी समय पर घर ना आई तो ? कहीं उन लोगो ने उसे मोहल्ले में देख लिया तो ?  अरे अरे..... सविता खामखा इतनी चिंता कर रही हो। और वैसे भी मंदिर यहीं तो हैं पीछे वाली गली में और रही बात उन लोगो की तो उनके आने में अभी समय है। 


एक हाथ में पूजा की थाली और दूसरे हाथ से अपना सीधा घुटना संभाले देवी मंदिर की तरफ बढ़ी चली जा रही थी।  लाल रंग का सूट उसके गोरे बदन पर फब रहा था वहीं उसके हल्के भीगे बाल उसकी कमर पर झूल रहें थे।  आज देवी अलग ही दुनिया में थी, आज उसे उन लोगो की चिंता नहीं थी जो रोज़ उसे देख कर मंद हंसी हस्ते थे और न ही उन लोगो की जो हर बार शादी के नाम पर उसके शारीरिक ढांचे का मज़ाक उड़ाया करते थे।  


दूसरी और राकेश और सविता घर में मेहमानो की बात कर रहें थे। अपने कहा था की ये लोग थोड़े पुराने खयालो के हैं, हाँ सविता सुना तो मैनें भी कुछ यही है.  मगर  उन्होंने देवी को तस्वीर में ही पसंद कर लिया था, मुझे नहीं लगता की देवी के साथ जो परेशानी है उससे उन्हें कोई समस्या होगी। क्या आपने उन्हें सच बताया हैं ?  नहीं,  राकेश ने सविता को जवाब दिया। 


घर की घंटी बजती हैं , राकेश दरवाज़ा खोलता है। मेहमान घर आ चुके थे और उनसे पहले देवी भी। बैठक के सामने वाले कमरे के पर्दे के पीछे देवी खड़ी थी। थोड़ी शरमाई हुई थी ,लेकिन किसी को एक नज़र भर देख लेना चाहती थी। इस बीच मेहमानो को बैठक में बिठया गया।  पानी , चाय और नाश्ते की रसम अदा की गयी।  मेहमानो की संख्या पूरी छह थी। पहला शिव ,जिससे देवी की शादी की बात चल रही थी। दूसरे शिव के पिता मूलचंद, उनकी पत्नी रंजीता , माँ शोभना , पिता जगदीश और दूसरा बेटा रूद्र और सातवे  मेहमान थे वर्मा जी।  वर्मा जी ने ही राकेश को शिव के बारे में बताया था और देवी के साथ रिश्ते की बात की थी। 


जैसा की पहले बात हो चुकी हैं की शिव का परिवार पुराने खयालो का है लेकिन कितने पुराने खयालो का ये आज सबको पता लगने वाले था। देवी को जान कर बैठक के सामने वाले कमरे में बैठाया गया था ,ये लड़के वालो की ही इच्छा थी।  उनका मानना था की लड़की सबके सामने न आए जिसे भी उससे मिलना हो वो खुद मिल आएगा और सवाल सवाब भी अकेले में ही कर लेगा। दूर से जिसने भी देवी को देखा उसे यही लगा की मनो शिव क लिए साक्षात् कैलाश से पारवती उत्तर आई हों।  


नाश्ता करने के बाद सविता के साथ शिव की माँ रंजीता और दादी शोभना बैठक के सामने वाले कमरे में देवी के पास पहुंची। देवी दोनों  को बड़ी सहज दिख  रही थी, हालाँकि अंदर से कितनी नर्वस थी ये उसके आलावा किसी को मालूम न था।  दोनों ने देवी से  अपने सवालों जवाबो का सिलसिला शुरू किया। रंजीता और शोभना के सभी सवालों के जवाब देवी ने सहजता और शालीनता के साथ दिए।  पढाई- लिखाई से लेकर सिलाई, कढ़ाई , बुनाई कुछ हद तक शास्त्रों का ज्ञान , भजन सभी कामो में अव्वल थी देवी। रंजीता और शोभना के चेहरे पर देवी के सहमति के भाव सविता को दिख रहे थे , और वो इनसे खुश भी थी। 


सभी वापस बैठक में आते हैं और शादी की बात करने लग जाते।  इस बीच वर्मा जी राकेश की और देख कर  शिव से बोलते हैं की वो अंदर जाकर देवी से मिल सकता है। राकेश भी हामी भरता हैं। हालाँकि ,  शोभना और रंजीता का मानना है की शिव का देवी से मिलना ज़रूरी नहीं है। घर के बड़ो ने हां कर दी है तो अब शिव का देवी से मिलने का क्या मतलब।  अब रिश्ते की बात की जाए और लेन देन की बात की जाए। लेकिन छोटे भाई रूद्र के कहने के पर और ज़बरदस्ती करने पर सभी को शिव को देवी के पास भेजना पड़ता है। 


शिव एक सुलझा और साहसी लड़का है , लेकिन परिवार से बेहद प्यार करता है। और इसी प्यार के चलते अपने परिवार की सोच के खिलाफ नहीं जा पाता। शिव और देवी एक दूसरे से बात कर रहें हैं। वैसे पसंद तो दोनों एक दूसरे को तस्वीर में ही कर चुके हैं। लेकिन फॉर्मेलिटी अदा करना भी कभी कभी ज़रूरी हो जाता है। दोनों के बीच बात उन्हीं सवालों से शुरू होती हैं जो अक्सर किसी भी रिश्ते को शुरू करने से पहले पूछे जाते हैं। 


वहीं बैठक में शादी में होने वाली सबसे ज़रूरी बात की जा रही है। जो है  लेन देन की बात। लड़के वालो की तरफ से सब कुछ मिलाकर 20 से  25 लाख की मांग की गयी थी। इसमें घर का सामान , गाड़ी , परिवार वालो के लिए कपडे लत्ते और शिव के अपने काम के लिए कैश शामिल था।  राकेश और सविता को ये मालूम था की मांग जाँच होने वाली है लेकिन इतनी होगी ये कतई मालूम न था। हर माँ बाप की तरह वो भी देवी के लिए सब कुछ करने को  तैयार थे लेकिन उससे पहले ही घर में वो हुआ जिसकी कल्पना शायद देवी ने  तो बिलकुल नहीं की थी। 


देवी और शिव एक दूसरे को पसंद थे ये बात अब सबको पता चलनी थी।  शिव कमरे से बहार आकर खड़ा हो  गया और सबके पूछने के बाद शिव हाँ में सर हिलता उससे पहले ही देवी अपने सीधे घुटने को पकडे लंगड़ाती हुई शिव के पीछे आकर खड़ी हो गयी। देवी को ऐसे चलते देख कर सबकी हवाइयां उड़ गयी। शिव की माँ रंजीता और दादी शोभना का तो देवी पर  तानो का पहाड़ ही  टूट पड़ा था। हे राम लंगड़ी लड़की बिहाने चले हैं हमरे घर। क्यों भाई साहेब पहले क्यों नहीं बताया की आपकी लड़की लंगड़ी हैं। अच्छा हुआ जो रिश्ता पक्का होने से पहले ही  सच्चाई सामने आ गयी वर्ना हम जात बिरादरी में मुँह दिखने लायक नहीं रहते। इनका क्या क्या है शादी कर के बांध देते हमारे शिव के पल्ले इस लंगड़ी को उसके बाद क्या ? बस हमारा शिव इसे और इसके बोझ को उठाये फिरता। रंजीता ने कहा....


वर्मा जी इन्होने छुपाया समझ आता है लेकिन  आपने सच क्यों नहीं बताया, रंजीता ने गुस्से में कहा। एक और जहाँ राकेश और सावित सच  छिपाने  के लिए अपराध बोध थे वहीँ देवी का वो सपना टूट गया था जो उसने अभी देखना शुरू भी नहीं किया।  शिव के साथ अपनी नई ज़िंदगी का सपना । पहले कभी कोई देवी को उसकी कमी के लिए कुछ कहता या चिड़ाता तो उसे  कभी गुस्सा नहीं आया हां बुरा ज़रूर लगता था।  लेकिन वो अपने ईश्वर को याद करती और सोचती की ईश्वर मेरे साथ अच्छा ही करेंगे। शिव से पहले भी जब कई बार उसके घर रिश्ते आकर लोट जाते तब भी उसने कभी परवाह नहीं की। ये ईश्वर पर उसकी अटूट श्रद्धा और विश्वास ही था जो उसे हर बार टूटने से बचा लेता था। 


 लेकिन आज सब टूट चूका था , देवी, ईश्वर पर उसका विश्वास और अटूट श्रद्धा भी।  वो समझ रही थी की अपनी जिस कमी को वो अपनी श्रद्धा के पीछे छिपाने की कोशिश किया करती थी उसे ईश्वर कभी नहीं बदल सकता। अपनी खामियों और कमियों को ये कहकर की " ईश्वर ने ही हमें ऐसा बनाया हैं "  ईश्वर पर थोप देना आसान होता है।  लेकिन जब यही हकीकत हमारे समने आईने की तरह आती  है तो उसमे अपना चेहरा देखना मुश्किल हो जाता है। आपके कई गुणों पर आपकी एक कमी कितनी भरी पड़ जाती है ये भी आज उसे  समझ आ रहा था। वो ये भी समझ रही थी की , पूरी तरह किसी पर आश्रीत होकर जीना सच्चाई सामने आने पर तकलीफ देता हैं।  



Comments